Tuesday, January 8, 2019

Hindi Shayari self-composed

कितना ही अध्यन  करले लोग ,
न जान पाए मूल्य ज़िंदगी के हर पल का ;
कितना ही आगे बढ़ले लोग ,
न जान पाए आज़ाद आ रहे कल का ;
कितने ही धनी हो जाये लोग ,
न जान पाए मूल्य होंठ की मुस्कान का;
कितने ही बुद्धीमान बनना चाहे लोग,
कभी न समझ पाए खेल खुदा की शतरंज का ।
कितनी शिददत से,
कितने ही अलफ़ाज़ लिख लेते है लोग;
हमने तो कलम ही उठाई थी ,
और...
सिर्फ "तू" पर अटक गयी। 

---

न तुम हमें, न हम तुम्हें ;
जानते थे,
गैर थे हम;
और अब...
हर बात कितने रास में भरी है मनो जैसे कायनात की कामना पूरी हुयी हो।

---

पूछने लगे की क्या कुछ लिखना है आता ,
हम चुप चुप से रहते है इसीलिए  हमारा साथ नहीं भाता ;
अब क्या बताये उनको ,
की लिखा तो बहुत कुछ है बस दिखाया नहीं जाता,
और जब वो सामने हों तो दिल कुछ बोल नहीं पता। 

---

 दूसरों का दिल दुख क्र भी खुश रहते है लोग,
लगता है अब सुकून बाज़ारों में मिलता है। 

---

न फुसरत में पढ़ना , न शिद्दत से;
मेरे लफ़्ज़ों को, बस पढ़ना तुम इज़्ज़त से। 

---

मेरी नादानी से वाक़िफ़ थे तुम,
फिर यूँ क्यों खेला मेरे जज़्बों से;
सदक़त मेरी को,
यूँ तोड़ गए तुम लफ़्ज़ों से। 

---

प्यार से कही ज़ादा मायेने का रिश्ता था भरोसे का ;
मगर तुम्हारी उल्फत के चर्चे सुने हमने गैरों पे। 

---

कहने का तो हक़  नहीं कोई ,
पर रह न पाएंगे यूँ चुप से ;
जब गुरूर से भरकर टूट जाओ ,
तब गौर करना इसपे फिर से। 

---

तोड़ कर जोड़ लो चाहे हर चीज़  दुनिआ की ;
सब काबिल-ए -मरम्त है ऐतबार के सिवा। 

---

न उम्र ही इतनी है की ,
तजुरबा कह सकू;
न नादानी ही इतनी है की ,
बचपन कह सकू। 

---

उलझी सी बातें लेकर ,
कश्मकश चल रही है ;
वक्त बदल गया,
मगर आज भी उनके जज़्बात वही है। 

---

मेरा यूँ लिखना उनको अच्छा नहीं लगता ,
सोचकर चाहा था शायद मुझे कोई लाहपरवाही न थी ;
वो ज़हर देते तो सब की निगाहों में आ जाता ,
तो यूँ किया की मुझे वक्त पे दवाई न दी। 

---

No comments:

Post a Comment

Modelo OSI

Open System Interconnection , Interconexión de Sistemas Abiertos, es un modelo para estudiar las categorías en que se pueden dividir los pr...